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न्यूज डेस्क, अमर उजाला, चेन्नई
Revealed by: सुरेंद्र जोशी
Up to date Mon, 13 Sep 2021 09:10 PM IST
सार
कोर्ट ने कहा कि तमिल न केवल दुनिया की प्राचीनतम भाषाओं में से एक है बल्कि देवताओं की भाषा भी है। इसका जन्म भगवान शंकर के डमरू से हुआ है।
मद्रास हाईकोर्ट ने तमिल भाषा को देवताओं की भाषा बताया है। कोर्ट ने कहा कि देश भर के मंदिरों का अभिषेक अजवार और नयनमार के अलावा अरुणगिरिनाथर जैसे संतों द्वारा रचित तमिल मंत्रों-भजनों के माध्यम से किया जाना चाहिए। तमिल भाषा का जन्म भगवान शंकर के डमरू से हुआ है।
मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस एन किरुबाकरण और जस्टिस बी. पुगलेंधी की पीठ ने हाल ही के एक आदेश में उक्त बातें कहीं। पीठ ने कहा कि हमारे देश में, यह माना जाता है कि संस्कृत अकेले ईश्वर की भाषा है और कोई अन्य भाषा समकक्ष नहीं है। निस्संदेह, संस्कृत एक विशाल प्राचीन साहित्य के साथ प्राचीन भाषा है। लोगों को विश्वास है कि अगर संस्कृत वेदों का पाठ किया जाता है, तो भगवान भक्तों की गुहार को सुनेंगे।
दरअसल हाईकोर्ट तमिलनाडु के करूर जिले में एक मंदिर के अभिषेक की मांग वाली एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती सहित सरकारी अधिकारियों को थिरुमुराइकल, तमिल का जाप करके स्वामी तिरुकोविल का अभिषेक/कुदामुजुक्कू/नन्नीरट्टू समारोह आयोजित करने का निर्देश देने की मांग की गई।
भगवान शंकर के डमरू से हुआ उदय
हाईकोर्ट ने याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा कि ‘तमिल न केवल दुनिया की प्राचीनतम भाषाओं में से एक है बल्कि ‘देवताओं की भाषा’ भी है। ऐसा माना जाता है कि तमिल भाषा का भगवान शंकर के डमरू से हुआ है। शिव के नृत्य करते समय डमरू उनके हाथ से गिर गया था। यह भी मान्यता है कि भगवान मुरुगा ने तमिल भाषा की रचना की थी।’
मद्रास हाईकोर्ट को कहना है कि पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव ने पहली तमिल संगम की अध्यक्षता की। यह भी माना जाता है कि भगवान शिव ने तमिल कवियों के ज्ञान का परीक्षण करने के लिए ‘थिरुविलयादल’ खेला। इसका मतलब यह है कि तमिल भाषा देवताओं से जुड़ी हुई है। यह एक ईश्वरीय भाषा है। अभिषेक करते समय इसका इस्तेमाल होना चाहिए।
विस्तार
मद्रास हाईकोर्ट ने तमिल भाषा को देवताओं की भाषा बताया है। कोर्ट ने कहा कि देश भर के मंदिरों का अभिषेक अजवार और नयनमार के अलावा अरुणगिरिनाथर जैसे संतों द्वारा रचित तमिल मंत्रों-भजनों के माध्यम से किया जाना चाहिए। तमिल भाषा का जन्म भगवान शंकर के डमरू से हुआ है।
मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस एन किरुबाकरण और जस्टिस बी. पुगलेंधी की पीठ ने हाल ही के एक आदेश में उक्त बातें कहीं। पीठ ने कहा कि हमारे देश में, यह माना जाता है कि संस्कृत अकेले ईश्वर की भाषा है और कोई अन्य भाषा समकक्ष नहीं है। निस्संदेह, संस्कृत एक विशाल प्राचीन साहित्य के साथ प्राचीन भाषा है। लोगों को विश्वास है कि अगर संस्कृत वेदों का पाठ किया जाता है, तो भगवान भक्तों की गुहार को सुनेंगे।
दरअसल हाईकोर्ट तमिलनाडु के करूर जिले में एक मंदिर के अभिषेक की मांग वाली एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती सहित सरकारी अधिकारियों को थिरुमुराइकल, तमिल का जाप करके स्वामी तिरुकोविल का अभिषेक/कुदामुजुक्कू/नन्नीरट्टू समारोह आयोजित करने का निर्देश देने की मांग की गई।
भगवान शंकर के डमरू से हुआ उदय
हाईकोर्ट ने याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा कि ‘तमिल न केवल दुनिया की प्राचीनतम भाषाओं में से एक है बल्कि ‘देवताओं की भाषा’ भी है। ऐसा माना जाता है कि तमिल भाषा का भगवान शंकर के डमरू से हुआ है। शिव के नृत्य करते समय डमरू उनके हाथ से गिर गया था। यह भी मान्यता है कि भगवान मुरुगा ने तमिल भाषा की रचना की थी।’
मद्रास हाईकोर्ट को कहना है कि पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव ने पहली तमिल संगम की अध्यक्षता की। यह भी माना जाता है कि भगवान शिव ने तमिल कवियों के ज्ञान का परीक्षण करने के लिए ‘थिरुविलयादल’ खेला। इसका मतलब यह है कि तमिल भाषा देवताओं से जुड़ी हुई है। यह एक ईश्वरीय भाषा है। अभिषेक करते समय इसका इस्तेमाल होना चाहिए।
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