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राजीव सिन्हा, अमर उजाला, नई दिल्ली
Printed by: अभिषेक दीक्षित
Up to date Fri, 24 Sep 2021 07:53 PM IST
सार
सुप्रीम कोर्ट ईडब्ल्यूएस कोटा पर मद्रास हाईकोर्ट की टिप्पणियों के खिलाफ केंद्र सरकार द्वारा दायर एक विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) पर विचार कर रहा था। हाईकोर्ट ने कहा था कि ईडब्ल्यूएस आरक्षण के लिए संविधान पीठ की मंजूरी आवश्यक है।
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को मद्रास हाईकोर्ट के एक आदेश की उस टिप्पणी को निरस्त कर दिया है जिसमें कहा गया था कि नीट-अखिल भारतीय कोटे में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के लिए आरक्षण केवल सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ की मंजूरी से ही लागू किया जा सकता है। संविधान पीठ 103वें संविधान संशोधन की वैधता की जांच कर रहा है। इसी के तहत ‘आर्थिक आरक्षण’ का प्रावधान किया गया था।
जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस बी वी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि मद्रास हाईकोर्ट की टिप्पणियां अनावश्यक थीं। पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट नीट-अखिल भारतीय कोटे में ओबीसी आरक्षण को लागू करने की मांग करने वाली एक अवमानना याचिका पर विचार कर रहा था इसलिए 10 फीसदी ईडब्ल्यूएस कोटा पर टिप्पणी उसके अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन है।
जस्टिस चंद्रचूड ने कहा, ‘हाईकोर्ट द्वारा यह पाए जाने पर कि कोई अवमानना नहीं है, वह एक व्यापक आयाम में चला गया। यहां हाईकोर्ट ने वास्तव में गलती की है। जब आप अवमानना मामले पर विचार करते हैं तो आपको बस यह देखने की जरूरत है कि आदेश का पालन किया गया है या नहीं?’
सुप्रीम कोर्ट ईडब्ल्यूएस कोटा पर मद्रास हाईकोर्ट की टिप्पणियों के खिलाफ केंद्र सरकार द्वारा दायर एक विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) पर विचार कर रहा था। केंद्र की ओर से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने कहा कि हाईकोर्ट को अपनी अवमानना शक्ति का प्रयोग करते समय यह टिप्पणी नहीं करनी चाहिए थी। डीएमके पार्टी, जिसने हाईकोर्ट में अवमानना याचिका दायर की थी, की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि यह मुद्दा जटिल है और केंद्र की एसएलपी को ईडब्ल्यूएस/ओबीसी कोटे को चुनौती देने वाली अन्य याचिकाओं के साथ सुना जा सकता है। सिब्बल ने कहा कि 103वें संविधान संशोधन की वैधता की जांच पांच जजों की पीठ कर रही है।
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट की उक्त टिपण्णी को निरस्त करते हुए यह स्पष्ट किया कि वह नीट-अखिल भारतीय कोटे में ईडब्ल्यूएस आरक्षण के गुण-दोष पर कुछ भी राय नहीं दे रहा है क्योंकि वह किसी अन्य याचिका का विषय है।
विस्तार
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को मद्रास हाईकोर्ट के एक आदेश की उस टिप्पणी को निरस्त कर दिया है जिसमें कहा गया था कि नीट-अखिल भारतीय कोटे में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के लिए आरक्षण केवल सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ की मंजूरी से ही लागू किया जा सकता है। संविधान पीठ 103वें संविधान संशोधन की वैधता की जांच कर रहा है। इसी के तहत ‘आर्थिक आरक्षण’ का प्रावधान किया गया था।
जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस बी वी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि मद्रास हाईकोर्ट की टिप्पणियां अनावश्यक थीं। पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट नीट-अखिल भारतीय कोटे में ओबीसी आरक्षण को लागू करने की मांग करने वाली एक अवमानना याचिका पर विचार कर रहा था इसलिए 10 फीसदी ईडब्ल्यूएस कोटा पर टिप्पणी उसके अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन है।
जस्टिस चंद्रचूड ने कहा, ‘हाईकोर्ट द्वारा यह पाए जाने पर कि कोई अवमानना नहीं है, वह एक व्यापक आयाम में चला गया। यहां हाईकोर्ट ने वास्तव में गलती की है। जब आप अवमानना मामले पर विचार करते हैं तो आपको बस यह देखने की जरूरत है कि आदेश का पालन किया गया है या नहीं?’
सुप्रीम कोर्ट ईडब्ल्यूएस कोटा पर मद्रास हाईकोर्ट की टिप्पणियों के खिलाफ केंद्र सरकार द्वारा दायर एक विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) पर विचार कर रहा था। केंद्र की ओर से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने कहा कि हाईकोर्ट को अपनी अवमानना शक्ति का प्रयोग करते समय यह टिप्पणी नहीं करनी चाहिए थी। डीएमके पार्टी, जिसने हाईकोर्ट में अवमानना याचिका दायर की थी, की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि यह मुद्दा जटिल है और केंद्र की एसएलपी को ईडब्ल्यूएस/ओबीसी कोटे को चुनौती देने वाली अन्य याचिकाओं के साथ सुना जा सकता है। सिब्बल ने कहा कि 103वें संविधान संशोधन की वैधता की जांच पांच जजों की पीठ कर रही है।
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट की उक्त टिपण्णी को निरस्त करते हुए यह स्पष्ट किया कि वह नीट-अखिल भारतीय कोटे में ईडब्ल्यूएस आरक्षण के गुण-दोष पर कुछ भी राय नहीं दे रहा है क्योंकि वह किसी अन्य याचिका का विषय है।
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