महिला सशक्तीकरण बदलते दौर में हिंदी सिनेमा के निर्माताओं का नया ब्रह्मास्त्र बनता दिख रहा है। दीपिका पादुकोण, रानी मुखर्जी, कंगना रणौत, तापसी पन्नू और अनुष्का शर्मा जैसी अभिनेत्रियों की बीते पांच साल में रिलीज हुई फिल्मों को इस पैमाने पर मिली चर्चा से ये बातें फोकस में भी आई हैं। लेकिन, यहां फिलहाल बात तापसी पन्नू की। हिंदी सिनेमा में आने से पहले उन्होंने अपने करियर की मियाद खुद ही पांच-सात साल तय की थी लेकिन ‘पिंक’, ‘मुल्क’, ‘सूरमा’ और ‘बदला’ जैसी फिल्मों ने उन्हें लंबी रेस का धावक साबित किया। और, यही वे फिल्में हैं जिनकी वाहवाही ने तापसी पन्नू को अति आत्मविश्वास से भी भर दिया है। तापसी अपनी ‘गेम ओवर’, ‘सांड की आंख’ और ‘थप्पड़’ जैसी फिल्मों की ‘हवा’ में हैं और वह ये या तो जानतीं नहीं या जानना नहीं चाहतीं कि कि ‘मनमर्जियां’, ‘हसीन दिलरुबा’ और ‘एनामबेल सेतुपति’ जैसी फिल्मों में उनके एक जैसे अभिनय से उनकी साख दरकने लगी हैं।
रश्मि रॉकेट रिव्यू – फोटो : अमर उजाला, मुंबई
पिछली बार उनसे जब बात हुई तो उनका कहना था कि उन्हें दर्शकों को चौंकाने में मजा आता है। उनकी अपनी इस कसौटी पर फिल्म ‘रश्मि रॉकेट’ को कसें तो ये फिल्म शुरू से लेकर आखिर तक एक सपाट सतह पर चलती है। अच्छा ही है कि इसे ओटीटी पर रिलीज कर दिया गया। जी5 देसी ओटीटी है। देश भर की भाषाओं में ये लगातार कंटेंट परोसता रहता है। कोशिश उसकी जारी है कि हिंदी सिनेमा के बड़े प्रोडक्शन हाउस और बड़े सितारों को वह अपने प्लेटफॉर्म पर लाए। फिल्म ‘रश्मि रॉकेट’ उसी की एक कड़ी है लेकिन फिल्म अगर इसके निर्देशक आकर्ष खुराना ने संतुलित तरीके से और सीमित समय अवधि की बनाई होती तो इसके परिणाम आश्चर्यजनक हो सकते थे। फिल्म का हाइलाइट प्वाइंट अभिषेक बनर्जी की अदाकारी है और फिल्म के दूसरे हिस्से में यही वह बात है जो फिल्म को बचा ले जाती है।
रश्मि रॉकेट रिव्यू – फोटो : अमर उजाला, मुंबई
फिल्म ‘रश्मि रॉकेट’ कहानी है एक ऐसी लड़की की जिसके बारे में शुरू से दर्शकों को बताया जाता है कि उसके पड़ोसी उसे छोरी कम और छोरा ज्यादा समझते हैं। टॉम ब्वॉय वाली उसकी हरकतें दिखाई जाती हैं और दिखाया जाता है कि वह कभी रॉकेट की तरह उड़ने वाली धावक रही है। एक फौजी को बचाते समय लगाई गई उसकी दौड़ उसे भारतीय सेना के एक कैप्टन के करीब लाती है जो उसे फिर से ट्रैक पर उतारने की जिद ठान लेता है। अपनी मां से रश्मि का अजीब सा रिश्ता है। वह उसे नाम लेकर भी बुलाती है और दुलारती भी खूब है। खैर, रश्मि फिर से दौड़ना शुरू करती है। सूबे के सारे शूरवीरों को धराशायी करके राष्ट्रीय टीम में शामिल होने का मौका पाती है। मामला ‘चक दे इंडिया’ होता दिखता है। साजिशें रची जाती हैं। फिर से तापसी को ‘थप्पड़’ पड़ता है और मामला अदालत तक पहुंच जाता है। यहां से आगे वकील बने अभिषेक फिल्म को अपने कंधों पर ढो ले जाते हैं।
रश्मि रॉकेट रिव्यू – फोटो : अमर उजाला, मुंबई
ओटीटी पर ये फिल्म देखने के लिए शुरू में काफी धैर्य चाहिए। फिल्म का नाम भले ‘रश्मि रॉकेट’ हो लेकिन ये आगे बहुत धीरे धीरे बढ़ती है। राइटर, एक्टर, कास्टिंग डायरेक्टर, वॉयस ओवर आर्टिस्ट और डायरेक्टर के चोले पहन चुके आकर्ष खुराना ने इस बार अपने पास सिर्फ निर्देशन का ही काम रखा है। पिता आकाश खुराना की विरासत को आगे ले जाने की कोशिशों में लगे आकर्ष ने ओटीटी पर अच्छा काम किया है। ‘ट्रिपलिंग’ और ‘ये मेरी फैमिली’ जैसी सीरीज भारत में बनी बेहतरीन सीरीज में गिनी जाती हैं। लेकिन बतौर फिल्म निर्देशक ‘हाई जैक’ में वह असफल रहे। ‘कारवां’ में उनका काम लोगों को पसंद तो आया लेकिन वह फिल्म को कामयाबी नहीं दिला सका। ‘रश्मि रॉकेट’ से लोगों को काफी उम्मीदें रही हैं और आकर्ष खुराना अगर हिंदी फिल्मों के तयशुदा फॉर्मूलों से खुद को बचा पाते तो ये फिल्म इस साल की बेहतरीन फिल्मों में शुमार हो सकती थी।
रश्मि रॉकेट रिव्यू – फोटो : अमर उजाला, मुंबई
‘रश्मि रॉकेट’ देखने के बाद आपको भारतीय धाविका दुत्ती चंद की बार बार याद आ सकती है। फिल्म की टाइमलाइन भी उनके करियर और उनसे जुड़े विवादों के आसपास ही घूमती रहती है। लेकिन आकर्ष ने अपनी रश्मि को समलैंगिक नहीं दिखाया है। उसका औरत होना जिस तरीके से आखिर में जगजाहिर होता है, उसे रश्मि अदालत में अपने पक्ष में तो इस्तेमाल नहीं करना चाहती लेकिन आकर्ष इसे तुरुप का पत्ता समझ क्लाइमेक्स तक जरूर खींच लाते हैं। अगर फिल्म को ओटीटी पर ही रिलीज करना तय हो गया था तो आकर्ष को इसे फिर से एडिट करके 90 मिनट का कर देना चाहिए था। फिल्म के गाने इसकी गति में बाधा बनते हैं। एथलीट और फौज के कैप्टन का डांस जमता नहीं है। और जमता फिल्म का ये पहलू भी नहीं है कि इसमें बाकी किरदारों की पृष्ठभूमि जमाने की तरफ खास ध्यान नहीं दिया गया। फिल्म की कहानी पूरे नंबर पाती है लेकिन इसकी पटकथा फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी है। फिल्म का संगीत हालांकि अमित त्रिवेदी का है लेकिन वह भी आजमाए हुए टोटकों से आगे नहीं बढ़ पाता।
रश्मि रॉकेट रिव्यू – फोटो : अमर उजाला, मुंबई
तापसी पन्नू ने फिल्म की रिलीज से पहले इसकी एक झलक सोशल मीडिया पर जारी की थी और तब दावा किया गया था कि इस ‘मर्दाना’ शरीर को लेकर वह खूब ट्रोल हुईं। लेकिन, अंदरखाने ये सबको पता है कि ये फिल्म के प्रचार का एक बहुत ही बेतुका शिगूफा था जिसने फिल्म को फायदा पहुंचाने की बजाय इसे नुकसान ही पहुंचाया। तापसी पन्नू को भी लगने लगा है कि वह अच्छी कहानियां तलाशकर बेहतरीन अदाकारा बन सकती हैं। लेकिन, उसके लिए उन्हें कहानियों में विविधता लानी होगी और अपने अभिनय में नयापन। उनका अभिनय बीते पांच साल से वहीं का वहीं ठहरा है। बतौर अभिनेत्री वह किरदार तो बेहतरीन चुन रही हैं लेकिन जरूरी है कि ये वह अपने अभिनय में भी विविधता लाएं। अगर वह ऐसा करेंगी तो उनके किरदार को स्थापित करने के लिए निर्देशक को स्लोमोशन, लो एंगल कैमरा जैसे दूसरे टोटके नहीं आजमाने होंगे। ओटीटी पर रिलीज हुई ये उनकी तीसरी फिल्म है और अब उन्हें ऐसा कुछ करना ही होगा जिससे उनके निर्माता उनकी फिल्मों को सिनेमाघरों तक लाने का रिस्क उठाने की हिम्मत भी कर सकें।
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